उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
|
47 पाठक हैं |
प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
3
विभूतिचरण तीन मास तक अपनी पूजा में व्यस्त रहा। इन दिनों कई बार शहंशाह का बुलावा आया, परंतु वह पूजाकाल में अपने गाँव से बाहर जाने से इंकार करता रहा। अब शहंशाह उसे पकड़कर तथा बाँधकर आगरा लाने की आज्ञा नहीं दे सका। वह उसके पुनः अनशन कर बैठ जाने से डरता था।
यही नहीं कि वह एक हिंदू के मर जाने से भयभीत था। शहंशाह की इच्छापूर्ति में कितने मरते हैं अथवा कितने जीवित रहते हैं, विचारणीय कभी भी नहीं हुआ था। दो बातें थीं जिनसे वह बचना चाहता था। एक तो भूखे रहकर मरनेवाले को लोग सत्य समझेंगे और युद्ध में सहस्रों को मार डालनेवाले की इस प्रकार एक के मारने से अधिक बदनामी होने की संभावना थी। युद्ध में अधिक-से-अधिक हत्याएँ करनेवाला बड़ा योद्धा माना जाता है, परंतु द्वार पर भूखे रहकर मर जाने वाले से अपमान ही हो सकता है।
इसके अतिरिक्त भी विभूतिचरण अपनी ज्योतिष विद्या से सब जान जोखिम के कार्यों में पथ-प्रदर्शक होता था। शहंशाह उसको किंचिन्मात्र अधीरता से खो देना नहीं चाहता था।
तीन माह के उपरांत वह पूजा से उठा तो सबसे पहले उसे अकबर का ही संदेश मिला। संदेश था कि शहंशाह तीन मास से प्रतीक्षा कर रहे हैं।
|