उपन्यास >> प्रारब्ध और पुरुषार्थ प्रारब्ध और पुरुषार्थगुरुदत्त
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प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
‘‘तो सिर इस इमारत का कब बनेगा?’’
‘‘यह मैं किसी अन्य मोदी से बनवाने वाला हूँ।’’
‘‘तो हमसे ही क्यों नहीं बनवाया?’’
‘‘यह मेरा एक राज़ है।’’
‘‘हमसे भी छुपाव है आपका राज?’’
‘‘अपनी बीवी और बच्चों से भी छुपाव है। जब बन जाएगा तो सारी दुनिया को पता लग जाएगा।’’
अकबर ने बात बदल दी। वह अपनी सल्तनत की बात पूछने लगा। उसने कहा, ‘‘पंडित जी! हमारी महारानी के बच्चा होनेवाला है।’’
‘‘मुझे मालूम है।’’
‘‘कैसे पता चला? यह राज तो मैंने महल के वाशिंदों से भी छुपा कर रखा है।’’
‘‘जहाँपनाह! मैं आपके महल का बाशिंदा नहीं हूँ। मैं इस पूरी दुनिया का बाशिंदा हूँ। मैंने अभी हुज़ूर, बताया है कि मैं पूजा से इस दुनिया के राज जान जाता हूँ।’’
‘‘अच्छा बताओ, महारानी के लड़का होगा या लड़की?’’
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