उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास) कर्मभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…
सलीम की आँखों में आँसू थे। बोला–‘तुमने रुपये दिए, तो बुढ़िया कैसी तुम्हारे पैरों पर गिर पड़ी। मैं तो अलग मुँह फेरकर रो रहा था।’
मण्डली यों ही बातचीत करती चली जाती थी। अब पक्की सड़क मिल गयी थी। दोनों तरफ़ ऊँचे वृक्षों ने मार्ग को अँधेरा कर दिया था। सड़क के दाहिने-बाएँ-नीचे ऊख, अरहर आदि के खेत खड़े थे। थोड़ी-थोड़ी दूर पर दो-एक मजूर या राहगीर मिल जाते थे।
सहसा एक वृक्ष के नीचे-दस-बारह स्त्री-पुरुष सशंकित भाव से दबके हुए दिखाई दिए। सब-के-सब सामने वाले अरहर के खेत की ओर ताकते और आपस में कनफुसियाँ कर रह थे। अरहर के खेत की मेड़ पर दो गोरे सैनिक हाथ में बेंत लिए अकड़े खड़े थे। छात्र-मण्डली को कुतूहल हुआ। सलीम ने एक आदमी से पूछा–‘क्या माजरा है, तुम लोग क्यों जमा हो?’
अचानक अरहर के खेत की ओर से किसी औरत का चीत्कार सुनाई पड़ा। छात्रवर्ग अपने डण्डे सँभालकर खेत की तरफ़ लपका। परिस्थिति उनकी समझ में आ गयी थी।
एक गोरे सैनिक ने आँखें निकालकर छड़ी दिखाते हुए कहा–‘भाग जाओ; नहीं हम ठोकर मारेगा।’
इतना उसके मुँह से निकला था कि डॉ. शान्तिकुमार ने लपककर उसके मुँह पर घूँसा मारा। सैनिक के मुँह पर घूँसा पड़ा, तिलमिला उठा; पर था घूँसेबाज़ी में मँजा हुआ। घूँसे का जवाब जो दिया, तो डाक्टर साहब गिर पड़े। उसी वक़्त सलीम ने अपनी हाकी स्टिक उस गोरे पर जमाई। वह चौंधिया गया, जमीन पर गिर पड़ा और जैसे मूर्च्छित हो गया। दूसरे सैनिक को अमर और एक दूसरे छात्र ने पीटना शुरू कर दिया था; पर वह इन दोनों युवकों पर भारी था। सलीम इधर से फुरसत पाकर उस पर लपका। एक के मुक़ाबले में तीन हो गये। सलीम की स्टिक ने इस सैनिक को भी जमीन पर सुला दिया। इतने में अरहर के पौधों को चीरता हुआ तीसरा गोरा आ पहुँचा। डॉक्टर शान्तिकुमार सँभलकर उस पर लपके ही थे कि उसने रिवाल्वर निकालकर दाग दिया। डॉक्टर साहब जमीन पर गिर पड़े। अब मामला नाजुक था। यह भी लगा हुआ था कि वह दूसरी गोली न चला दे। सबके प्राण नहों में समाए हुए थे
मजूर लोग अभी तो तमाशा देख रहे थे। मगर डॉक्टर साहब को गिरते देख उनके ख़ून में भी जोश आया। भय की भाँति साहस भी संक्रामक होता है। सब-के-सब अपनी लकड़ियाँ सँभालकर गोरे पर दौड़े। गोरे ने रिवाल्वर दागी; पर निशाना खाली गया। इसके पहले कि वह तीसरी गोली चलाये, उस पर डंडों की वर्षा होने लगी और एक क्षण में वह भी आहत होकर गिर पड़ा।
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