लोगों की राय

उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास)

कर्मभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :658
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8511

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

31 पाठक हैं

प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…


काशी ने अविश्वास के भाव से कहा–‘वहाँ महीनों में विचार होगा, तब तक यहाँ कारिन्दे हमें नोच डालेंगे।’

अमर ने खिसियाकर कहा–‘महीनों में क्यों विचार होगा? दो-चार दिन बहुत हैं।’

पयाग बोला–‘यह सब टालने की बातें हैं। ख़ुशी के कौन अपने रुपये छोड़ सकता है?’

अमर रोज सवेरे जाता और घड़ी रात गये लौट आता। पर अर्ज़ी पर विचार न होता था। कारकुन, उनके मुहर्रिरों, यहाँ तक की चपरासियों की मिन्नत-समाजत करता; पर कोई न सुनता था। रात को वह निराश होकर लौटता, तो गाँव के लोग यहाँ उसका परिहास करते।

पयाग कहता–‘हमने तो सुना था कि रुपये में आठ आने छूट हो गयी।’

काशी कहता–‘तुम झूठे हो। मैंने तो सुना था, महन्तजी ने इस साल पूरी लगान माफ कर दी।’

उधर आत्मानन्द हलक़े में बराबर जनता को भड़का रहे थे। रोज बड़ी-बड़ी किसान सभाओं की खबरें आती थीं। जगह-जगह किसान-सभाएँ बन रही थीं। अमर की पाठशाला भी बन्द पड़ी थी। उसे फुरसत ही न मिलती। पढ़ाता कौन? रात को केवल मुन्नी अपनी कोमल सहानुभूति से उसके आँसू पोंछती थी।

आख़िर सातवें दिन उसकी अर्ज़ी पर हुक्म हुआ कि सामने पेश किया जाये। अमर महन्त के सामने लाया गया। दोपहर का समय था। महन्तजी ख़सख़ाने में एक तख्त पर मसनद लगाये लेटे हुए थे। चारों तरफ़ ख़स की टट्टियाँ थीं, जिन पर गुलाब का छिड़काव हो रहा था। बिजली के पंखे चल रहे थे। अन्दर इस जेठ के महीने में इतनी ठण्डक थी कि अमर को सर्दी लगने लगी।

महन्तजी के मुख-मण्डल पर दया झलक रही थी। हुक्के का एक क़श खींचकर मधुर स्वर में बोले– ‘इलाक़े ही में रहते हो न? मुझे यह सुनकर बड़ा दुःख हुआ कि मेरे असामियों को इस समय कष्ट है। क्या सचमुच उनकी दशा यही है जो तुमने अर्ज़ी में लिखी है?’

अमर ने प्रोत्साहित होकर कहा–‘महाराज, उसकी दशा इससे कहीं खराब है, कितने ही घरों में चूल्हा नहीं जलता।’

महन्तजी ने आँखें बन्द करके कहा–‘भगवान! यह तुम्हारी क्या लीला है–तो तुमने मुझे पहले ही क्यों न ख़बर दी? मैं इस फ़स्ल की वसूली रोक देता। भगवान के भण्डार में किस चीज़ की कमी है। मैं इस विषय में बहुत जल्द सरकार से पत्र-व्यवहार करूँगा और वहाँ से जो कुछ जवाब आयेगा, वह असामियों को भिजवा दूँगा। तुम उनसे कहो, धैर्य रखें। भगवान् यह तुम्हारी क्या लीला है?’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book