उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास) कर्मभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…
उसने कहा–‘लेकिन यह तो बुरा मालूम होता कि मेहनत का काम तुम करो और मैं...’
काले खाँ ने बात काटी–‘भैया, इन बातों में क्या रखा है? तुम्हारा काम इस चक्की से कहीं कठिन होगा। तुम्हें किसी से बात करने तक की मुहलत न मिलेगी। मैं रात को मीठी नींद सोऊँगा। तुम्हें रातें जागकर काटनी पड़ेंगी। जान-जोखिम भी तो है। इस चक्की में क्या रक्खा है। यह काम तो गधा भी कर सकता है, कल भी कर सकती है; लेकिन जो काम तुम करोगे, वह बिरले कर सकते हैं।’
सूर्यास्त हो रहा था। काले खाँ ने अपने पूरे गेहूँ पीस डाले थे और दूसरे क़ैदियों के पास जा-जाकर देख रहा था, किसका कितना बाकी है। कई क़ैदियों के गेहूँ अभी समाप्त नहीं हुए थे। जेल कर्मचारी आटा तौलने आ रहा होगा। इन बेचारों पर आफ़त आ जायेगी, मार पड़ने लगेगी। काले खाँ ने एक-एक चक्की के पास जाकर क़ैदियों की मदद करनी शुरू की। उसकी फुरती और मेहनत पर लोगों को विस्मय होता था। आध घंटे में उसने फिसड्डियों की कमी पूरी कर दी। अमर अपनी चक्की के पास खड़ा सेवा के पुतले को श्रद्धा-भरी आँखों से देख रहा था, मानो दिव्य दर्शन कर रहा हो।
काले खाँ इधर से फुरसत पाकर नमाज़ पढ़ने लगा। वहीं बरामदे में उसने वजू किया, अपना कम्बल ज़मीन पर बिछा दिया और नमाज़ शुरू की। उसी वक़्त जेलर साहब चार वार्डरों के साथ आटा तुलवाने आ पहुँचे। क़ैदियों ने अपना-अपना आटा बोरियों में भरा और तराजू के पास आकर खड़े हो गये। आटा तुलने लगा।
जेलर ने अमर से पूछा–‘तुम्हारा साथी कहाँ गया?’
अमर ने बतलाया–‘नमाज़ पढ़ रहा है।’
‘उसे बुलाओ। पहले आटा तुलवा ले, फिर नमाज़ पढ़े। बड़ा नमाज़ी की दुम बना है। कहाँ गया है नमाज़ पढ़ने?’
अमर ने शेड की तरफ़ इशारा करके कहा–‘उन्हें नमाज़ पढ़ने दें; आप आटा तौल लें।’
जेलर यह कब देख सकता था कि कोई क़ैदी उस वक़्त नमाज़ पढ़ने जाय, जब जेल के साक्षात प्रभु पधारे हों! शेड के पीछे जाकर बोले–‘अबे ओ नमाज़ी के बच्चे, आटा क्यों नहीं तुलवाया? बचा, गेहूँ चबा गये हो, तो नमाज़ का बहाना करने लगे। चल चटपट, वरना मारे हण्टरों के चमड़ी उधेड़ लूँगा।’
काले खाँ दूसरी ही दुनिया में था।
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