उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास) कर्मभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…
जिस दिन उसने नये अफ़सर को चार्ज़ दिया और इलाक़े से बिदा होने लगा, उसके डेरे के चारों-तरफ़ स्त्री-पुरुष का एक नया मेला लग गया और सब उससे मिन्नतें करने लगे, आप इस दशा में हमें छोड़ कर न जायँ। सलीम यही चाहता था। बाप के भय से घर न जा सकता था। फिर इन अनाथों से उसे स्नेह हो गया था। कुछ तो दया और कुछ अपने अपमान ने उसे उनका नेता बना दिया। वही अफ़सर जो कुछ दिन पहले अफ़सरी के मद से भरा हुआ आया था, जनता का सेवक बन बैठा। अत्याचार सहना अत्याचार करने से कहीं ज़्यादा गौरव की बात मालूम हुई।
आन्दोलन की बागडोर सलीम के हाथ आते ही लोगों के हौसले बँध गये। जैसे पहले अमरकान्त के साथ गाँव-गाँव दौड़ा करता था, उसी तरह सलीम दौड़ने लगा। वही सलीम, जिसके ख़ून के लोग प्यासे हो रहे थे, अब उस इलाक़े का मुकुटहीन राजा था। जनता उसके पसीने की जगह ख़ून बहाने को तैयार थी।
संध्या हो गयी थी। सलीम और आत्मानन्द दिन भर काम करने के बाद लौटे थे कि एकाएक नयी बंगाली सिविलियन मि. घोष पुलिस कर्मचारियों के साथ आ पहुँचे और गाँव भर के मवेशियों के कुर्क करने की घोषणा कर दी। कुछ कसाई पहले से ही बुला लिए गये थे। वे सस्ता सौदा ख़रीदने को तैयार थे। दम-के-दम में कांस्टेबलों ने मवेशियों को खोल-खोलकर मदरसे के द्वार पर जमा कर दिया। गूदड़, भोला, अलगू सभी चौधरी गिरफ़्तार हो चुके थे। फ़सल की क़ुर्की तो पहले ही हो चुकी थी; मगर फ़सल में अभी क्या रखा था? इसलिए अब अधिकारियों के मवेशियों को क़ुर्क़ करने का निश्चय किया था। उन्हें विश्वास था कि किसान मवेशियों की कुर्की देखकर भयभीत हो जायेंगे, और चाहे उन्हें क़र्ज लेना पड़े, या स्त्रियों के गहने बेचने पड़े, वे जानवरों को बचाने के लिए सब कुछ करने पर तैयार होंगे। जानवर किसान के दाहिने हाथ हैं।
किसानों ने यह घोषणा सुनी, तो छक्के छूट गये। वे समझ बैठे थे कि सरकार और जो चाहे करे, पर मवेशियों को क़ुर्क़ न करेगी। क्या किसानों की जड़ खोदकर फेंक देगी?
यह घोषणा सुनकर भी वे यही समझ रहे थे कि यह केवल धमकी है; लेकिन जब मवेशी मदरसे के सामने जमा कर दिये गये और क़साइयों ने उनकी देखभाल शुरू की, तो सबों पर जैसे वज्रपात हो गया। अब समस्या उस सीमा तक पहुँची थी, जब रक्त का आदान-प्रदान आरम्भ हो जाता है।
चिराग़ जलते-जलते जानवरों का बाज़ार लग गया। अधिकारियों ने इरादा किया है कि सारी रक़म एकजाई वसूल करें। गाँव वाले आपस में लड़-भिड़कर अपने-अपने लगान का फैसला कर लेंगे। इसकी अधिकारियों को कोई चिन्ता नहीं है।
सलीम ने आकर मि. घोष से कहा– ‘आपको मालूम है कि मवेशियों को क़ुर्क़ करने का आपको मजाज़ नहीं है?’
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