उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास) कर्मभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…
उसी वक़्त बोर्ड के पचीसों मेम्बरों ने सामने आकर अर्थी पर फूल बरसाये और हाफ़िज हलीम ने आगे बढ़कर, ऊँचे स्वर में कहा–‘भाइयो! आप म्युनिसिपैलिटी के मेम्बरों के पास जा रहे हैं, मेम्बर खुद आपका इस्तिक़बाल करने आये हैं। बोर्ड ने आज इत्तिफ़ाक राय से पूरा प्लाट आप लोगों को देना मंजूर कर लिया। मैं इस पर, बोर्ड को मुबारकबाद देता हूँ, और आपको भी। आज बोर्ड ने तसलीम कर लिया कि ग़रीब की सेहत, आराम और ज़रूरत की वह अमीरों की शौक, तक़ल्लुफ़ और हाविस से ज़्यादा लिहाज़ के क़ाबिल समझता है। उसने तसलीम कर दिया कि ग़रीबों का उस पर उससे कहीं ज़्यादा हक़ है, जितना आमीरों का। हमने तस्लीम कर लिया कि बोर्ड रुपये की निस्बत रिआया की जान की ज़्यादा क़द्र करती है। उसने तसलीम कर लिया कि शहर की ज़ीनत बड़ी-बड़ी कोठियों और बँगलों से नहीं, छोटे-छोटे आरामदेह मकानों से है, जिनमें मज़दूर और थोड़ी आमदनी के लोग रह सकें। मैं खुद उन आदमियों में हूँ जो इस वसूल की तसलीम न करते थे। बोर्ड का बड़ा हिस्सा मेरे ही ख़याल के आदमियों का था; लेकिन आपकी क़ुर्बानियों ने और आपके लीडरों की ज़ाँबाज़ियों ने उन्हें बोर्ड पर फ़तह पायी और मैं उस फ़तह पर आपको मुबारकबाद देता हूँ; और इस फ़तह का सेहरा उस देवी के सिर है, जिसका जनाज़ा आपके कन्धों पर है। लाला समरकान्त मेरे पुराने रफ़ीक़ हैं। उनका सपूत बेटा मेरे लड़के का दिली दोस्त है। अमरकान्त जैसा शरीफ़ नौजवान मेरी नज़र से नहीं गुज़रा। उसी की सोहबत का असर है कि आज मेरा लड़का सिविल सर्विस छोड़कर जेल में बैठा हुआ है। नैना देवी के दिल में जो कशमकश हो रही थी, उसका अन्दाज़ा हम और आप नहीं कर सकते। एक तरफ़ बाप और भावज जेल में क़ैद, दूसरी तरफ़ शौहर और ससुर मिलकियत और जायदाद की धुन में मस्त। लाला धनीराम मुझे मुआफ़ करेंगे। मैं उन पर फ़िकरा नहीं कसता। जिस हालत में वह गिरफ़्तार थे, उसी हालत में हम, आप और हमारी सारी दुनिया गिरफ़्तार हैं। उनके दिल पर इस वक़्त एक ऐसे ग़म की चोट है, जिससे ज़्यादा दिलशिकन कोई सदमा नहीं हो सकता। हमको, और मैं यकीन करता हूँ, आपको भी उनसे कमाल हमदर्दी है। हम सब उनके ग़म में शरीक हैं। नैना देवी के दिल में मैका और ससुराल की यह लड़ाई शायद इस तहरीक के शुरू होते ही शुरू हुई और आज उसका यह हसरतनाक अंजाम हुआ। मुझे यक़ीन हैं कि उनकी इस पाक क़ुरबानी की यादगार हमेशा शहर में उस वक़्त तक क़ायम रहेगी, जब तक इसका वज़ूद क़ायम रहेगा! मैं बुतपरस्त नहीं हूँ, लेकिन सबसे पहले मैं तज़वीज़ करूँगा कि उस प्लाट पर जो मोहल्ला आबाद हो, उसके बीचोबीच इस देवी की यादगार नस्ब की जाये, ताकि आने वाली नसलें उसकी शानदार क़ुरबानी की याद ताज़ा करती रहें।’
‘दोस्तों, मैं इस वक़्त आपके सामने कोई तकरीर नहीं करता हूँ। यह न तक़रीर करने का मौका है, न सुनने का। रोशनी के साथ तारीकी है, जीत के साथ हार और ख़ुशी के साथ ग़म। तारीकी और रोशनी का मेल सुहानी सुबह होती है, और जीत और हार के मेल सुलह। यह ख़ुशी और ग़म का मेल एक नये दौर की आवाज़ है और ख़ुदा से हमारी दुआ है कि यह दौर हमेशा क़याम रहे, इसमें ऐसे ही हक़ पर जाने देने वाली पाक रूहें पैदा होती रहें; क्योंकि दुनिया ऐसी ही रूहों की हस्ती से क़ायम है। आपसे हमारी गुजारिश है कि इस ज़ीत के बाद हराने वालों के साथ वही बर्ताव कीजिएगा, जो बहादुर दुश्मन के साथ किया जाना चाहिए। हमारी इस पाक सरज़मीन में हारे हुए दुश्मनों को दोस्त समझा जाता था। लड़ाई ख़त्म होते ही हम रंजिश और गुस्से को दिल से निकाल डालते थे; और दिल खोलकर दुश्मन से गले मिल जाते थे। आइए, हम और आप गले मिलकर उस देवी की रूह को ख़ुश करें, जो हमारी सच्ची रहनुमा, तारीकी में सुबह का पैग़ाम लाने वाली सुफ़ैदी थी। खु़दा हमें तौफ़ीक दे कि इस सच्ची शहीद से हम हक़ परस्ती और ख़िदमत का सबक़ हासिल करें।’
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