लोगों की राय

उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास)

कर्मभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :658
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8511

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

31 पाठक हैं

प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…


चकित होकर बोला–‘यह तो खूबसूरत रूमाल है, माताजी। सकीना काढ़ने के काम में बहुत होशियार मालूम होती है।’

बुढ़िया ने गर्व से कहा–‘यह सभी काम जानती है भैया, न जाने कैसे सीख लिया। मुहल्ले की दो-चार लड़कियाँ मदरसे पढ़ने जाती हैं। उन्हीं को काढ़ते देखकर इसने सब कुछ सीख लिया। कोई मर्द घर में होता, तो हमें कुछ काम मिल जाया करता। ग़रीबों के मुहल्ले में इन कामों की कौन क़दर कर सकता है। तुम यह रूमाल लेते जाओ बेटा, एक बेकस बेवा की नज़र है।’

अमर ने रूमाल को जेब में रखा तो उसकी आँखें भर आयीं। उसका बस होता तो इसी वक़्त सौ-दो सौ रूमालों की फ़रमाइश कर देता। फिर भी यह बात उसके दिल में जम गयी। उसने खड़े होकर कहा–‘मैं इस रूमाल को हमेशा तुम्हारी दुआ समझूँगा। वादा तो नहीं करता लेकिन मुझे यक़ीन है कि मैं अपने दोस्तों से आपको कुछ काम दिला सकूँगा।’

अमरकान्त ने पठानिन के लिए ‘तुम’ का प्रयोग किया था। चलते समय तक वह तुम ‘आप’ में बदल गया था। सुरुचि, सुविचार सद्भाव, उसे यहाँ सब कुछ मिला है। हाँ, उस पर विपन्नता का आवरण पड़ा हुआ था। शायद सकीना ने यह ‘आप’ और ‘तुम’ का विवेक उत्पन्न कर दिया था।

अमर उठा खड़ा हुआ। बुढ़िया आंचल फैलाकर दुआएँ देती रही।

अमरकान्त नौ बजते-बजते लौटा तो लाला समरकान्त ने पूछा–‘तुम दुकान बन्द करके कहाँ चले गये थे? इसी तरह दुकान पर बैठा जाता है?’

अमर ने सफ़ाई दी–‘बुढ़िया पठानिन रुपये लेने आयी थी। बहुत अँधेरा हो गया था। मैंने समझा कहीं गिर-गिरा पड़े इसीलिए उसे घर तक पहुँचाने चला गया था। वह तो रुपये लेती ही न थी; पर जब बहुत देर हो गयी तो मैंने रोकना उचित न समझा।’

‘कितने रुपये दिए?’

‘पाँच।’

लालाजी को कुछ धैर्य हुआ।
‘और कोई आसामी आया था? किसी से कुछ रुपये वसूल हुए?’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book