उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास) कर्मभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…
यह गोरे उस श्रेणी के थे, जो अपनी आत्मा को शराब और जुए के हाथों बेच देते हैं, बेटिकट फ़र्स्ट क्लास में सफ़र करते हैं, होटलवालों को धोखा देकर उड़ जाते हैं और जब कुछ बस नहीं चलता, तो बिगड़े शरीफ़ बनकर भीख माँगते हैं। तीनों ने आपस में सलाह की और जंजीर बेच डाली। रुपये लेकर दुकान से उतरे और ताँगे पर बैठे ही थे कि एक भिखारिन ताँगे के पास आकर खड़ी हो गयी। वे तीनों रुपये पाने की ख़ुशी में भूले हुए थे कि सहसा उस भिखारिन ने छुरी निकालकर एक गोरे पर वार किया। छुरी उसके मुँह पर आ रही थी। उसने घबड़ाकर मुँह पीछे हटाया तो छाती में चुभ गयी। वह तो ताँगे पर ही हाय-हाय करने लगा। शेष दोनों गोरे ताँगे से उतर पड़े और दुकान पर आकर प्राणरक्षा करना चाहते थे कि बिखारिन ने दूसरे गोरे पर वार कर दिया। छुरी उसकी पसली में पहुँच गयी। दुकान पर चढ़ने न पाया था, धड़ाम से गिर पड़ा। भिखारिन लपककर दुकान पर चढ़ गयी और मेम पर झपटी कि अमरकान्त हाँ-हाँ करके उसकी छुरी छीन लेने को बढ़ा। भिखारिन ने उसे देखकर छुरी फेंक दी और दुकान के नीचे कूदकर खड़ी हो गयी। सारे बाज़ार में हलचल मच गयी–एक गोरे ने कई आदमियों को मार डाला है, लाला समरकान्त मार डाले गये, अमरकान्त को भी चोट आयी है। ऐसी दशा में किसे अपनी जान भारी थी, जो वहाँ आता लोग दुकानें बन्द करके भागने लगे।
दोनों गोरे ज़मीन पर पड़े तड़प रहे थे, ऊपर मेम सहमी हुई खड़ी थी और लाला समरकान्त अमरकान्त का हाथ पकड़ कर अन्दर घसीट ले जाने की चेष्टा कर रहे थे। भिखारिन भी सिर झुकाए जड़वत् खड़ी थी–ऐसी भोली-भाली जैसे कुछ किया ही नहीं है।
वह भाग सकती थी, कोई उसका पीछा करने का साहस न करता; पर भागी नहीं। वह आत्मघात कर सकती थी। उसकी छुरी अब भी ज़मीन पर पड़ी हुई थी; पर आत्मघात भी न किया। वह तो इस तरह खड़ी थी, मानो उसे यह दृश्य देखकर विस्मय हो रहा हो।
सामने के कई दुकानदार जमा हो गये। पुलिस के दो जवान भी आ पहुँचे। चारों तरफ़ से आवाज आने लगी–‘यही औरत है? यही औरत है! पुलिसवालों ने उसे पकड़ लिया।’
दस मिनट में सारा शहर और सारे अधिकारी जमा हो गये। सब तरफ़ लाल पगड़ियाँ दीख पड़ती थीं। सिविल सर्जन ने आकर आहतों को उठवाया और अस्पताल ले चले। इधर तहक़ीकात होने लगी। भिखारिन ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया।
पुलिस के सुपरिन्टेन्डेन्ट ने पूछा–‘तेरी इन आदमियों से कोई अदावत थी?’’
भिखारिन ने कोई जवाब न दिया।
सैकड़ों आवाज़ें आयीं–‘बोलती क्यों नहीं? हत्यारिन!’
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