उपन्यास >> कर्मभूमि (उपन्यास) कर्मभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…
‘बनाए तो हैं सकीना ही ने।’
‘अच्छा उनका नाम सकीना है। तो मैं फ़ी रूमाल पाँच रुपये दे दूँगा। शर्त यह है कि तुम उसका घर दिखा दो।’
‘हाँ शौक से; लेकिन तुमने कोई शरारत की, तो मैं तुम्हारा जानी दुश्मन हो जाऊँगा। अगर हमदर्द बनकर चलना चाहो, चलो। मैं तो चाहता हूँ, उसकी किसी भले आदमी से शादी हो जाए। है कोई तुम्हारी निगाह में ऐसा आदमी? बस, यही समझ लो कि उसकी तक़दीर खिल जाएगी। मैंने ऐसी हयादार और सलीक़ेमन्द लड़की नहीं देखी। मर्द को लुभाने के लिए औरत में जितनी बातें हो सकती हैं, वह सब उसमें मौजूद हैं।’
सलीम ने मुस्कराकर कहा–‘मालूम होता है, तुम खुद उस पर रीझ चुके। हुस्न में तो वह तुम्हारी बीबी के तलवों के बराबर भी नहीं।’
अमरकान्त ने आलोचक के भाव से कहा–‘औरत में रूप ही सबसे प्यारी चीज़ नहीं है। मैं तुमसे सच कहता हूँ, अगर मेरी शादी न हुई होती और मज़हब की रुकावट न होती, तो मैं उससे शादी करके अपने को भाग्यवान समझता।’
‘आख़िर उसमें ऐसी क्या बात है, जिस पर इतने लट्टू हो?’
‘यह तो मैं ख़ुद नहीं समझ रहा हूँ। शायद उसका भोलापन हो। तुम ख़ुद क्यों नहीं कर लेते? मैं यह कहता हूँ कि उसके साथ तुम्हारी ज़िन्दगी जन्नत बन जाएगी।’
सलीम ने सन्दिग्ध भाव से कहा–‘मैंने अपने दिल में जिस औरत का नक़शा खींच रखा है वह कुछ और ही है। शायद वैसी औरत मेरी खयाली दुनिया के बाहर कहीं होगी भी नहीं। मेरी निगाह में कोई आदमी आयेगा, तो बताऊँगा। इस वक़्त तो मैं यह रूमाल लिए लेता हूँ। पाँच रुपये से कम क्या दूँ? सकीना कपड़े भी सी लेती होगी? मुझे उम्मीद है कि मेरे घर से उसे काफ़ी काम मिल जाएगा। तुम्हें भी एक दोस्ताना सलाह देता हूँ। मैं तुमसे बदगुमानी नहीं करता; लेकिन वहाँ बहुत आमदोरफ़्त न रखना, नहीं बदनाम हो जाओगे। तुम चाहे कम बदनाम हो, उस गरीब़ की तो ज़िन्दगी ही ख़राब हो जाएगी। ऐसे भले आदमियों की कमी भी नहीं है, जो इस मुआमले को मजहबी रंग देकर तुम्हारे पीछे पड़े जायेंगे। उनकी मदद तो कोई न करेगा; लेकिन तुम्हारे ऊपर उँगली उठाने वाले निकल आयेंगे।’
अमरकान्त में उद्दण्डता न थी; पर इस समय वह झल्लाकर बोला–‘मुझे ऐसे कमीने आदमियों की परवाह नहीं है। अपना दिल साफ़ रहे, तो किसी बात का ग़म नहीं।’
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