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मनोरमा (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8534

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‘मनोरमा’ प्रेमचंद का सामाजिक उपन्यास है।

उपसंहार

कई साल बीत गये है। मुंशी वज्रधर नहीं रहे। घोड़े की सवारी का उन्हें बड़ा शोक था। नर घोड़े ही पर सवार होते थे। बग्धी, मोटर, पालकी इन सभी को वह जनानी सवारी कहते थे। एक दिन जगदीशपुर से बहुत रात गये लौटना हुआ था, लेकिन मुंशीजी नाले में उतरकर पार करना अपमान की बात समझते थे। घोड़े ने जस्त मारी, उस पार निकल भी गया, पर उसके पांव गड्ढे में पड़ गये, गिर पड़ा, मुंशीजी भी गिरे और फिर न उठे। हंस-खेलकर जीवन काट दिया निर्मला भी पति का वियोग सहने के लिए बहुत दिन जीवित न रही। उनकी अन्तिम अभिलाषा, कि चक्रधर– विवाह कर ले, पूरी न हो सकी।

रानी मनोरमा नये भवन में रहती हैं। कितनी ही चिड़िया पाल रखी हैं। उन्हीं की देख-रेख में अब वह अपने दिन काटती हैं। पक्षियों के कलरव में वह अपनी मनोव्यथा को विलीन कर देना चाहती हैं।

चक्रधर बहुत दिन घर पर न रहे। माता-पिता के बाद वह घर, घर ही न रहा। फिर दक्षिण की ओर सिधारे, लेकिन अब यह केवल सेवा कार्य ही नहीं करते; उन्हें पक्षियों से बहुत प्रेम हो गया है। विचित्र पक्षियों की उन्हें नित्य खोज रहती है। भक्त-जन उनका यह पक्षी-प्रेम देखकर उन्हें प्रसन्न करने के लिए नाना प्रकार के पक्षी लाते रहते हैं। इन पक्षियों के लिए अलग-अलग नाम है, अलग-अलग उनके भोजन की व्यवस्था है। उन्हें पढ़ाने घुमाने व चुगाने का समय नियत है।

सांझ हो गयी थी। मनोरमा बाग में टहल रही थी। सहसा हौज के पास एक बहुत ही सुन्दर पिंजरा दिखायी दिया उसमें एक पहाड़ी मैना बैठी हुई थी। रानीजी को आश्चर्य हुआ। यह पिंजरा कहां से आया? उसके पास कई पहाड़ी चिड़ियां थीं, जिन्हें उसने सैकड़ों रुपये खर्च करके खरीदा था. पर ऐसी सुन्दर एक भी न थी। रंग पीला था, सिर पर लाल दाग था, चोंच इतनी प्यारी कि चूम लेने का जी चाहता था। मनोरमा समीप गयी, तो मैना बोली-‘‘नोरा! हमें भूल गयी? तुम्हारा पुराना सेवक हूं।’’

मनोरमा के आश्चर्य का वारापार न रहा। उसे कुछ भय-सा लगा। इसे मेरा नाम किसने पढ़ाया? किसकी चिड़िया है? यहां कैसे आयी? इसका स्वामी अवश्य कोई होगा। आता होगा देखूं कौन है?

मनोरमा बड़ी देर तक खड़ी उस आदमी का इन्तजार करती रही। जब अब भी कोई न आया, तो उसने माली को बुलाकर पूछा-यह पिंजरा बाग में कौन लाया?

माली ने कहा– पहचानता तो नहीं हुजूर पर है कोई भले आदमी। मुझसे देर तक रियासत की बातें पूछते रहे। पिंजरा रखकर गए कि और चिड़िया लेता आऊं पर लौटकर न आए।

रानी– आज फिर आयेंगे?

माली– हां हुजूर कह तो गए हैं।

रानी– आयें तो मुझे खबर देना।

माली– बहुत अच्छा सरकार!

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