उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
मिस पाल ने मिस साहनी से पूछा, ‘‘तुम कैसा समझती हो मिस साहनी?’’
‘‘मैं तो ऐसा कुछ समझ पाई हूं कि मिस्टर स्वरूप ठीक ही हैं। न तो ये पिछड़े हैं और न तो मिसफिट ही।’’
इस समय क्लब का बैरा आया और लौगवुड ने उसको सबका खाना लाने के लिए कह दिया। उसने सबके लिए मीनो कार्ड पर निशान लगा दिए।
जब बैरा चला गया तो बात की दिशा बदल गई। लौगवुड ने मदन से पूछा, ‘‘आप कब तक यहां रहने वाले हैं मिस्टर स्वरूप?’’
‘‘कम-से-कम दो वर्ष।’’
‘‘पढ़ाई के साथ-साथ आप कुछ काम भी करना चाहेंगे क्या?’’
‘‘यह तो यूनिवर्सिटी का समय देखकर बता सकता हूं।’’
‘‘समय तो सायं पांच बजे से रात्रि के नौ बजे तक अथवा प्रातः सात बजे से ग्यारह बजे तक होता है। प्रातः सभी विद्यार्थी दिन का कुछ समय आय करने के लिये लगाते ही हैं।’’
‘‘तो क्या यह पढ़ने वाले विद्यार्थी निर्धनों की ही सन्तान होते हैं।’’
‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं हैं। बात यह है कि हम लोग यह हृदयंगम कर चुके थे कि समय ही धन है और धन से ही संसार चलता है।’’
‘‘हम लोग हिन्दुस्तान में तो यह मानते हैं कि विद्यार्थी-जीवन ज्ञान प्राप्ति के लिए है और इसका एक क्षण भी व्यर्थ गंवाना ठीक नहीं।’’
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