उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
|
88 पाठक हैं |
इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘किन्तु क्या यह सत्य नहीं कि हिन्दुस्तानियों की अपेक्षा अमेरिकन अधिक ज्ञानवान हैं?’’
इस बात को मदन अस्वीकार नहीं कर सका। वह देख रहा था कि वह स्वयं भी तो उच्च-शिक्षा प्राप्त करने के लिए अपने देश से चौदह हजार मील की दूरी पर आया हुआ है।
मिस साहनी ने कहा, ‘‘इस बात का उत्तर तो मिस्टर स्वरूप अभी नहीं कर सकते। इनको सात और दस वर्ष के बच्चों को ‘पोस्ट ऑफिस वाला गेम’ खेल खेलते हुए देख लेने दो, तभी ये बता सकेंगे कि हमारा ज्ञान हिन्दुस्तानियों से अधिक है अथवा कम।’’
सभी हंस पड़े। पाल ने शरारतपूर्ण दृष्टि से मिस साहनी की ओर देखकर कहा, ‘‘यह गेम तो तुम्हीं इनको सिखा सकती हो।’’
मदन के अतिरिक्त सभी हंस दिये। खाने के बाद नाच हुआ। लौगवुल पाल के साथ नाच करने लगा तो मिस साहनी ने भी मदन को पग रखने का ढ़ंग सिखाना आरम्भ कर दिया। दस-पन्द्रह मिनट के अभ्यास से ही मदन और मिस साहनी एक साथ नाचने लगे।
रात ग्यारह बजे जब क्लब बन्द होने का समय हुआ तो पाल अपनी कार में लौगवुड को बाबा के फार्म पर ले गई और मिस साहनी मदन के साथ अपने घर गई।
|