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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘फिर तो हम दोनों ही पिछड़े हुए हैं। मैं भी तो न शराब पीता हूं, न सिगरेट।’’

‘‘किन्तु आज से तो आपको इसको छूना आरम्भ कर देना चाहिए।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि आज आप दोनों एक ही विचार के मिल गए हैं और अब जीवन चलना चाहिए।’’

‘‘जीवन तो इसके बिना भी चलता है। देखिए, हिन्दुस्तान में अन्नादि के उपरान्त जो सबसे अधिक वस्तु बिकती है वह सिगरेट है। तब भी इसको पीने के लिए मैं अपने मन को तैयार नहीं कर सका।’’

‘‘तो क्या हिन्दुस्तान में सिगरेट बहुत अधिक पिये जाते है।’’

‘‘हां, इसका प्रयोग बढ़ता ही जा रहा है। नई पीढ़ी में तो कोई ऐसा विरला ही होगा जो इसका प्रयोग न करता हो। भोजन तो दिन में दो बार ही किया जाता है, परन्तु सिगरेट कम-से-कम बीस बार पीते होंगे। अन्नादि की दुकाने तो किसी मोहल्ले में एक-दो होंगी, किन्तु सिगरेट बेचने वाले एक गली में दस-पन्द्रह से कम नहीं है।’’

‘‘यहां पर भी यही बात है।’’

‘‘इसी से डॉक्टर साहनी कह रहे थे कि अब हिन्दुस्तान भी उतना ही प्रगतिशील हो रहा है जितना अमेरिका अथवा फ्रांस। साथ ही वे मुझे इस दुनिया में मिसफिट मानते हैं।

‘‘यह तो बहुत ही भंयकर बात है।’’

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