लोगों की राय

उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

88 पाठक हैं

इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘तो क्या हुआ?’ उसने कहा, ‘संसार द्रुतगति से उन्नति कर रहा है। अनेक प्रकार की हृदय गति तथा स्नायु मण्डल के रोगों की उत्पत्ति हम पुरुष के हार्मोन को स्त्री में न जाना मानते हैं।’

‘‘इस पर मुझे उसकी बात स्मरण हो आई। मैंने अपने विचारों से कटुरतापूर्ण व्यंग्य में पूछ लिया, ‘और क्या डॉक्टर! आपका अभाव उस प्रोफेसर और इस दुकानदार के हार्मोन से मिटा नहीं, जो अब एक संसद सदस्य के हार्मोन की लालसा करने लगी हैं?’

‘‘वह क्रोध से आगबबूला हो गई और बोली, ‘अनपढ़ मूर्ख औरत न हो तो शरीर क्रियाविज्ञान को जानती हो, न ही मनोविज्ञान समझती हो। मैं तुम्हारा इलाज नहीं कर सकती।’

‘‘वह जाने लगी तो मैंने कह दिया, ‘डॉक्टर! अपनी फीस तो लेती जाओ।’

‘‘महेश! मैं कभी-कभी सन्देह करने लगती हूं कि तुम, जो मेरी भांति अनपढ़ मूर्खो जैसी बातें करती हो, वास्तव की बात कुछ भी पढ़ी हो अथवा नहीं?’’

महेश्वरी हंसने लगी। फिर बोली, ‘‘अम्मा! मेरी जैसी लड़की अनपढ़ नहीं, प्रत्युत पिछड़ी हुई मानी जाती है। ज्योत्स्ना बैनर्जी प्रगतिशील मानी जाती है।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book