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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।

2

महेश्वरी का आग्रह था कि उसके अमेरिका जाने की सूचना मदन और डॉक्टर साहनी को न भेजी जाय। वह चुपचाप उनको जाकर मिलना चाहती थी। अतः जिस दिन से महेश्वरी अमेरिका जाने की तैयारी में लगी, उस दिन से मदन को पत्र डालना बन्द कर दिया गया।

महेश्वरी के पासपोर्ट इत्यादि बनाने में तीन मास लग गये। ज्यों ही सब प्रबन्ध पूर्ण हुआ महेश्वरी मिशिगन जा पहुंची। वह भी मिनर्वा होटल में ही ठहरी थी। इस होटल में यह चमत्कार हुआ कि पहले ही दिन महेश्वरी की भेंट मिस इलियट से हो गई।

महेश्वरी मध्याह्नोत्तर तीन बजे पहुंची थी। वह कमरे में सामान रख रिसेप्शन हॉल में चाय लेने के लिए आई तो उस समय वहां एक ही औरत बैठी हुई चाय पी रही थी। शनिवार का दिन था और मिस इलियट दफ्तर से निकल चाय पीने के आ गई थी। आज उसको अस्पताल जाना था। वहां उसका एक मित्र एक मास से पड़ा था।

महेश्वरी रिसेप्शन हॉल में पहुंची तो वह मिस इलियट के साथ वाली मेज पर जा बैठी। इतने बड़े हॉल में मिस इलियट अकेलापन अनुभव करती हुई बैठी थी। अतः एक विदेशी लड़की को हॉल में प्रवेश करते देख, उत्सुकता से उसकी ओर देखने लगी। जब महेश्वरी बैठी तो इलियट ने कुछ झुककर धीरे-से पूछ लिया, ‘‘ऐक्सक्यूज मी, मैं समझती हूं कि आप भारतीय हैं?’’

‘‘हां, और आप?’’

‘‘ब्राजीलियन।’’ मिस इलियट उठकर महेश्वरी की मेज पर आ गई और अपने चाय के बर्तन इत्यादि उठाकर वहीं ले आई–‘‘मैं आज बहुत अकेलापन अनुभव कर रही थी। सो आप आ गईं। मेरे एक अन्य हिन्दुस्तानी भी मित्र हैं, बहुत अच्छे आदमी हैं। और इसी होटल में इसी स्थान पर उनसे मेरा प्रथम परिचय हुआ था।’’

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