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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


महेश्वरी अपने अमेरिका आने का कारण किसी को बताना नहीं चाहती थी। इस कारण चुप रही। चाय आई तो मिस इलियट महेश्वरी की चाय बनाने लगी। महेश्वरी ने कहा, ‘‘आप क्यों कष्ट करती हैं? मैं स्वयं बना लूगीं।’’

‘‘कोई कष्ट नहीं। मैं इसमें बहुत प्रसन्नता अनुभव करती हूं। आप यहां किस काम से आई हैं।’’

‘‘मैं तो भ्रमण के लिए ही आई हूं।’’

‘‘भ्रमण के लिए? मैंने तो सुना था कि आपकी सरकार आपको खर्च करने के लिए पर्याप्त रुपया ही नहीं देती?’’

‘‘हां, यह ठीक है। परन्तु मेरे अंकल का यहां पर व्यापार चलता है। अतः मैं उनसे ले सकती हूं।’’

‘‘गुड! कहां है उनका व्यापार?’’

‘‘न्यूयार्क में।’’

‘‘तो आप वहां से आ रही हैं?’’

‘‘नहीं, मैं वहां जा रही हूं।’’

‘‘किन्तु यह कौन-सा मार्ग है वहां जाने का?’’

‘‘मैं यहां भी एक कार्य से ही आई हूं।’’

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