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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘कोई ‘लव ऐफेयर’ है क्या?’’

महेश्वरी हंस पड़ी, किन्तु कुछ बोली नहीं। मिस इलियट ने कहा, ‘‘वह हिन्दुस्तानी, जिनका मैं जिकर कर रही थी, बहुत ही सुन्दर युवक है और नई दिल्ली का रहने वाला है।’’

महेश्वरी चाहती थी कि वह अपने विषय में कुछ कहने के लिए विवश न हो जाय। इस कारण उसने कुछ पूछना भी उचित नहीं समझा। वह मुस्कुराती हुई चुपचाप चाय पीती रही।

‘‘बहुत ही विचित्र व्यक्ति है वह। अब तो उसका विवाह हो गया है। जब नहीं हुआ था, तब भी वह लड़कियों से मेल-जोल पसन्द नहीं करता था।’’

सहसा मिस इलियट ने घड़ी में समय देखा और उठती हुई बोली, ‘‘मुझे अस्पताल जाना है एक रोगी मित्र को देखने के लिए। इस कारण आपसे क्षमा मांगती हूं।’’

वह बिना बिल का भुगतान किये चली गई। महेश्वरी ने समझा कि कोई आवारा लड़की है और अपनी चाय का मूल्य चुकाने से बचने के लिए उसने यह सब ढोंग रचा है। इस पर भी उसने उसकी चाय का मूल्य चुका देना ही उचित समझा था। उसको बहुत विस्मय हुआ जब दो-तीन मिनट में ही वह लौट आई और महेश्वरी से क्षमा मांगती हुई बैरे को मूल्य देने लगी। महेश्वरी ने कहा भी, ‘‘इस प्रकार तो आप मेरा अपमान कर रही हैं?’’

‘कैसे?’’

‘‘मैं अभी आपको बता चुकी हूं कि मुझे रुपये-पैसों की कठिनाई नहीं है। फिर भी आप मूल्य चुकाने के लिए आई हैं ।’’

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