उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
|
88 पाठक हैं |
इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘हमारा परिचय अभी ऐसा नहीं कि हम एक दूसरे के खर्च पर चाय पियें ।’’
‘‘मैं तो समझती हूं कि हम उससे भी अधिक परिचय पा चुके हैं। मैं आपसे प्रार्थना करूंगी कि आप इस बिल का भुगतान न करें। फिर कभी किसी समय इसका विनिमय दे दीजिएगा।’’
‘‘एक सौ पचपन।’’
‘‘इस समय मुझे जल्दी है। मैं आपसे फिर मिलूंगी।’’
बिना बिल के भुगतान किये इलियट चली गई। महेश्वरी समझ नहीं सकी कि वह बहाना था अथवा उसने मन की वास्तविक अवस्था।महेश्वरी ने समझा कि यह अच्छा ही हुआ कि उसने उसे पैसे नहीं देने दिए।
चाय समाप्त कर वह टैक्सी पकड़ डॉक्टर साहनी के क्लिनिक पर जा पहुंची। इस समय साढ़े पांच बजने वाले थे और डॉक्टर चिकित्सालय पर रोगी आने लगे थे। महेश्वरी भी रोगियों के प्रतीक्षा करने के कमरे में जा बैठी। वह अभी वहां ही थी कि औरत जो नर्स के कपड़े पहने थी, उसके समीप आकर पूछने लगी, ‘‘आप किससे मिलना चाहती हैं?’’
‘‘डॉक्टर साहनी से।’’
‘‘कोई व्यक्तिगत कार्य है अथवा आप रोगिणी हैं?’’
‘‘मैं रोगिणी हूं और उनसे राय करने के लिए आई हूं।’’ महेश्वरी अपना परिचय देना नहीं चाहती थी।
नर्स बोली, ‘‘आप आ जाइये।’’
|