उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
महेश्वरी के संशय की पुष्टि होती गई। उसने संशय निवारण करने के लिए पूछ लिया, ‘‘बाई दि वे, डॉक्टर साहब के पास एक भारतीय युवक मिस्टर मदनस्वरूप भी तो रहता था?’’
‘‘हां, वही तो डॉक्टर साहब का दामाद है। उसको यहां आए लगभग डेढ़ वर्ष हो गया है। चार मास पूर्व उसका डॉक्टर की लड़की से विवाह हुआ था। वह विश्वविद्यालय में पढ़ता है और साथ ही नौकरी भी करता है।’’
यह सुनकर महेश्वरी का मुख विवर्ण हो गया। वह अनुभव करने लगी थी कि उसके हृदय की धड़कन बढ़ रही है और हाथ-पैरों में कम्पन होने लगा है। वह अभी निश्चय नहीं कर सकती थी कि उसको अपना वास्तविक परिचय दे अथवा नहीं। इससे उसने वहां से टल जाना ही उचित समझा। उसने डॉक्टर साहब के दामाद के साथ हुई दुर्घटना पर अपनी संवेदना प्रकट कर कहा, ‘‘मैं कल डॉक्टर साहब से मिलने का यत्न करूंगी।’’
महेश्वरी डॉक्टर साहनी के यहां से चली आई। बिना अपना परिचय दिये ही उसे पूर्ण परिस्थित का ज्ञान हो गया था। चिकित्सालय से निकल वह बाहर खड़ी हो विचार कर रही थी कि इस अवस्था में उसको क्या करना चाहिए। मदन का विवाह और फिर इस घटना को सुनकर तो वह बिलकुल घबरा गई थी। इस घबराहट में वह डॉक्टर स्मिथ से यह भी नहीं पूछ पाई थी कि मदन किस अस्पताल में पड़ा है।
दो बातें वह समझ रही थी। एक तो यह कि अस्पताल का पता करने के लिए जाने से तो डॉक्टर स्मिथ के मन में भी सन्देह उत्पन्न हो जायेगा। दूसरे जब इस समय रोगी को बेहोश कर उसकी टांगें काटी जा रही होंगी, उसको जाकर मिलने में न तो वह उसको सुखी कर सकेगी, न ही किसी प्रकार की बात कर सकेगी। फिर भी वह मदन से मिलने के लिए व्याकुल हो रही थी।
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