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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


इस प्रकार अनिश्चित मन वह वहां से चल पड़ी। वह पैदल ही जा रही थी। मार्ग का उसको ज्ञान नहीं था। इस कारण वह नहीं जानती थी कि वह ठीक मार्ग पर चल रही है अथवा गलत मार्ग पर। वह चलती-चलती जब थकान अनुभव करने लगी तो कहीं बैठकर आराम करने लगी। मकानों की पंक्तियों और सड़कों के फुटपाथ के अतिरिक्त कोई स्थान एकान्त पाने के लिए न देख, उसने होटल लौट जाने का निश्चय किया। वह सड़क के किनारे खड़ी हो किसी टैक्सी की प्रतीक्षा करने लगी। एक टैक्सी मिली और वह उसमें बैठ मिनर्वा होटल चली आई।

अपने कमरे में जा वह आराम-कुर्सी पर बैठ, अपने भविष्य के कार्यक्रम पर विचार करने लगी। उसके चिरकाल तक विचार करने का परिणाम यह निकला कि वह अगले दिन डॉक्टर से मिलने के लिए जायेगी और यत्न करेगी कि मदन से मिलने की अनुमति ले ले। वह रात खाना खाने की तैयारी में थी कि किसी ने उनका द्वार खटखटाया। उसने शब्द सुनकर पूछा, ‘‘कौन है?’’

‘‘इलियट।’’

‘‘आइये।’’ महेश्वरी ने समझा कि कदाचित वही औरत उससे खाना खाने के लोभ में आई है। उसने इलियट को बैठकर पूछा, ‘‘आपने रात्रि का भोजन कर लिया है कि नहीं?’’

‘‘नहीं, मैं आपको निमन्त्रण देने के लिए आई हूं। आज आप मेरे साथ भोजन करने के लिए चलिए। मैं आपको किसी अच्छे स्थान पर खाना खिलाने के लिए ले जाना चाहती हूं। मैं अपना रात्रि का भोजन नित्य प्रति ‘सिलविया रैस्टोरां’ में करती हूं।’’

‘‘आप यहां क्या करती हैं?’’ महेश्वरी दर्पण देख कर अपने वस्त्र सम्हालती हुई पूछने लगी।

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