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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘मैं साउथ ट्रांस कौन्टिनैंट रेलवे के ऑफिस में कार्य करती हूं।’’

‘‘रहती कहां हैं?’’

‘‘किसी के प्राइवेट मकान में एक कमरा ले रखा है। प्रातः की चाय पीकर वहां से चली आती हूं और रात को सोने के लिए वहां पहुंच जाती हूं। ब्रेकफास्ट, लंच, आफटर-नून-टी और डिनर, मैं बाजार में ही करती हूं।’’

‘‘यह जीवन कुछ नीरस नहीं प्रतीत होता?’’

‘‘नहीं, नीरस जीवन को सरस करने का ही यह प्रसार है।’’

‘‘क्या मतलब?’’

महेश्वरी चलने के लिए तैयार हो गई थी। उसने अपना बैग उठाया और दोनों चल पड़ी। इलियट ने महेश्वरी की बात का उत्तर नहीं दिया। होटल के नीचे उतर बस पर सवार हो, दोनों ‘सिलविला रैस्टोरां’ जा पहुंची। दोनों एक मेज पर बैठ गईं। इलियट ने बैरे का ऑर्डर दे दिया और महेश्वरी से पूछने लगी, ‘‘मिस...ओह! मैं नाम भूल गई हूं। क्या नाम है आपका?’’

‘‘इस समय आप कुछ चिन्तित प्रतीत होती हैं।’’

‘‘हां, मेरा इस नगर में केवल डॉक्टर साहनी से ही परिचय था। मैं जब आज उनसे मिलने गई तो मुझे वहां पर एक बहुत ही हृदय विदारक समाचार विदित हुआ है।’’

‘‘किस समय गई थीं आप वहां पर?’’

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