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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘मदन सुन्दर युवक है। मैं उससे विवाह करने के लिए तैयार हो जाती, परन्तु लैसली मुझसे अधिक सुन्दर है। वह उसके घर रहता भी था। स्वाभाविक रूप में वह उधर झुक गया और मैंने सन्तोष कर लिया। फिर भी मैं लैसली की मित्रता छोड़ नहीं सकी।

‘‘मैं आज मदन को हॉस्पिटल में देखने के लिए गई थी। उसकी दोनों टांगें घुटनों से ऊपर काट दी गई हैं। लैसली तो तीन दिन से, जब से यह दुर्घटना हुई है, रो रही है। उसके पेट में बच्चा है और डॉक्टर उसको कह रहे थे कि उसको धैर्य रखना चाहिए। मदन बच जायेगा और उसके पास इतना धन है कि उसके दामाद को खाने-पीने की चिन्ता नहीं करनी होगी।’’

‘‘किस हॉस्पिटल में है वह?’’

‘‘सैंट जेवियर नर्सिंग होम में। यह नर्सिंग होम कैथोलिक्स ने स्थापित किया है। यद्यपि अन्य अस्पतालों की अपेक्षा यह सस्ता है, किन्तु इसका प्रबन्ध अच्छा है।’’

खाना परसा जाने लगा। सूप आया और दोनों सूप पीने लगीं। महेश्वरी ने यह उचित समझा कि लैसली से परिचय न होने को, वह अब किसी प्रकार छिपाने का यत्न करे। उसने कहा, ‘‘लैसली का पालन-पोषण एक साधारण घर में दिल्ली के एक सबर्ब में हुआ था। मैं इसके साथ उस समय खेला करती थी। मुझे तो इसकी उस समय की रूपरेखा भलीभांति स्मरण है। भगवान् जाने वह मुझे पहचान सकेगी अथवा नहीं।’’

महेश्वरी ने अपने पिता के मुख से लक्ष्मी तथा डॉक्टर साहनी की एक कथा सुन रखी थी। उसी के आधार पर उसने यह बात कह दी थी।

‘‘मैं लैसली से उसके घर पर ही मिलूंगी।’’ उसने कहा।

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