उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘ठीक तो है, परन्तु यह करेगा कौन? मैं तो आपको विष नहीं दे सकती।’’ लैसली का कहना था।
‘‘क्यों?’’
‘‘एक तो यह अपराध है। इसका दण्ड, मृत्यु-दण्ड भी हो सकता है और मैं अभी मरना नहीं चाहती। दूसरे, मैं आपका जीवन न तो अपने लिए और न ही आपके लिए असह्य मानती हूं। आप इण्डस्ट्रियल डिजाइनिंग का कार्य तो कर ही सकते हैं। यह कार्य प्रायः मेज पर ही किया जाता है। इससे भी आपको पर्याप्त आय हो जायेगी। रही मेरी बात? मैं पिछली दो रात-भर अपने विषय पर विचार करती रही हूं और इस परिणाम पर पहुंची हूं कि अब भी मैं चाहूं तो बिना झगड़े के आपको छोड़ सकती हूं और नया सम्बन्ध बना सकती हूं। केवल यह बच्चे की बात है और इससे भी मैं चार-पाँच मास में निपट जाऊंगी।’’
लैसली की विवेचना सुनकर तो मदन सन्न रह गया। उसको इस प्रकार की बात की आशा नहीं थी। उसने कहा, ‘‘परन्तु डार्लिंग! कल तो तुम कह रही थीं कि यदि मैं मर भी गया तो तुम बच्चे के पालन के लिए एक विधवा का जीवन स्वीकार कर लोगी?’’
‘‘हां, परन्तु बाद में विचार करने पर मैं इस निर्णय पर पहुंची हूं कि अभी तो मेरा आपका सम्बन्ध है। यह रहेगा। किन्तु मैं स्वयं को सदा के लिए बन्धन में नहीं रखना चाहती।’’
मदन चुप रहा। उसने मन-ही-मन निश्चय कर लिया था कि यह जीवन, विशेषरूप में लैसली की वर्तमान मानसिक अवस्था में, सहन करने योग्य नहीं है। अतः उसने स्वयं को समाप्त करने का निश्चय कर लिया। हॉस्पिटल से छुट्टी मिल जाने पर एक दिन ‘पोटाशियम साइनाइड’ से उसने अपना जीवन समाप्त कर लेने का विचार बना लिया।
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