उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘मैं ठीक तो नहीं कह सकता। फिर भी कल की उसकी बातों से यह संकेत मिलता है कि वह इसी दिशा में विचार कर रही है।’’
‘‘बहुत निम्नस्तर की स्त्री है वह?’’
‘‘इस विषय में कौन क्या कह सकता है!’’
‘‘यद्यपि मेरा उससे कोई सम्बन्ध नहीं, फिर भी उसके व्यवहार का मेरे मन पर किसी प्रकार का प्रभाव होने वाला नहीं है।’’
‘‘और तुम्हारा मन क्या कहता है?’’
‘‘जो वह दिल्ली में कहा करता था।’’
‘‘परन्तु मैं तो अब वह रहा नहीं?’’
‘‘मुझे तो कोई अन्तर प्रतीत नहीं होता।’’
इस पर मदन ने अपनी टांगों पर पड़े कम्बल को खींच लिया और कहा, ‘‘देखो, अन्तर आया है अथवा नहीं?’’
महेश्वरी दोनों हाथों से कम्बल पकड़कर पुनः टांगों को ढ़ांकते हुए कहा, ‘‘क्या उन कटे हुए अंगों से मेरा किसी प्रकार कोई सम्बन्ध था?
मुझे तो कोई अन्तर नहीं प्रतीत होता।’’
‘‘और डॉक्टर साहनी की लड़की से मेरा सम्बन्ध?’’
‘‘वह आपकी निजी बात है। मेरा कोई अधिकार नहीं है कि मैं उस विषय में कुछ कह सकूं।’’
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