उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘ओह!’’ महेश्वरी उठ उसको हाथ जोड़, नमस्कार करती हुई बोली, ‘‘आओ बहिन बैठो।’’
लैसली मदन के पलंग पर उसके पायताने बैठ गई। फिर महेश्वरी से बोली, ‘‘आपका परिचय?’’
‘‘मैं महेश्वरी हूं, दिल्ली की रहने वाली हूं। अमेरिका आई तो मदन भैया से मिलने के लिए चली आई। यहां पहुंच इस दुर्घटना का पता चला तो हॉस्पिटल आ गई।’’
लैसली ने स्मरण करते हुए कहा, ‘‘महेश्वरी? तुम तो इसकी मंगेतर हो?’’
‘‘हां, थी। परन्तु अब तो मैं हॉस्पिटल में इनसे भाई का नाता बताकर ही भीतर आ सकी हूं।’’
‘‘इस झूठ बोलने की क्या आवश्यकता थी? ये आपके मंगेतर हैं।
मैंने इनसे सम्बन्ध-विच्छेद करने का निर्णय कर लिया है।’’
‘‘कब से?’’
‘‘अब आप आ गई हैं तो मेरे लिए कुछ अधिक विचार करने की आवश्यकता नहीं रही।’’
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