उपन्यास >> प्रगतिशील प्रगतिशीलगुरुदत्त
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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।
‘‘देखो बहिन! तुम्हारा इनसे क्या सम्बन्ध रहा है और भविष्य में क्या रहेगा, मुझे यह जानने की आवश्यकता नहीं है। मुझे यह जानने की लालसा भी नहीं है। मैं तो अपने इनसे सम्बन्ध की बात ही जानती हूं। वह अटल है, अटल रहेगा। इसके लिए मैं तुम्हारी सम्मति की आकांक्षा नहीं करती।’’
लैसली मुख देखती रह गई। वास्तव में इस नई परिस्थिति में वह अपने कर्त्तव्य का निश्चय नहीं कर पाई थी। इससे मन में मनन करने लगी थी कि इस अंगहीन व्यक्ति में यह युवती क्या देख रही है, जो उसके प्रति अपने सम्बन्धों की अटलता की बात कर रही है। वह विचार करती थी कि क्या वास्तव में इस अपाहिज व्यक्ति में अभी भी कुछ है। जो इस लड़की को पन्द्रह हजार मील की दूरी पर खींचकर ले आया है। इस विषय में किसी प्रकार का निर्णय करने में असमर्थ लैसली ने कहा, ‘‘ठीक है। आप अपने विषय में विचार कर और मैं अपने विषय में करूंगी। मैं, जब तक ये इस योग्य नहीं हो जायें कि अपनी आवश्यकतायें स्वयं पूर्ण कर सकें, तब तक इनकी सेवा में हूं। बाद की बात इस समय करनी व्यर्थ है।’’
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