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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

"वह दूरी जोकि तुम्हारे और तुम्हारे पडो़सी में कलह के कारण उत्पन्न हुई है, वास्तव में उस दूरी से कहीं अधिक है, जो कि तुम्हारे और सात देशों औऱ सात समुन्दर पार बसने वाले तुम्हारे प्रेमी के बीच में है।”

"स्मृति के लिए दूरी कुछ नहीं है और विस्मृति में ही एक ऐसी खाई है, जिसे न तो तुम्हारी वाणी और न तुम्हारे नेत्र लांघ सकते हैं।”

"समुद्र के किनारों और ऊंची-से-ऊंची पहाड़ियों की चोटियों के बीच एक ऐसा गुप्त पथ है, जिसे तुम्हें अवश्य तय करना पड़ेगा, इससे पहले कि तुम पृथ्वी के पुत्रों के साथ एक हो सको।”

"और तुम्हारे ज्ञान और तुम्हारी समझ के बीच एक ऐसा पथ है, जिसे तुम्हें अवश्य ही खोज निकालना होगा, इससे पहले कि तुम मनुष्य के साथ एक हो सको और इस प्रकार स्वयं में समा सको।”

"तुम्हारे दायें हाथ, जोकि देता है, और तुम्हारे बायें हाथ, जो कि लेता है, दोनों के बीच एक अनन्त दूरी है। केवल दोनों का प्रयोग करके, देकर और लेकर, ही तुम इन दोनों के बीच की दूरी समाप्त कर सकते हो, क्योंकि इसी ज्ञान के द्वारा कि अन्त में न तुम्हें कुछ देना है और न तुम्हें कुछ लेना है, तुम दूरी को तय कर सकोगे।”

"वास्तव में सबसे विस्तीर्ण दूरी तो वह है, जोकि तुम्हारे निद्रा-दृश्य और जागरण के बीच है, और उसके बीच है, जोकि केवल एक कर्म है और वह, जो एक आकांक्षा है।”

"और एक और पथ है, जिसे पार करने की तुम्हें अत्यन्त आवश्यकता है, इससे पहले कि तुम जीवन में समा सको। किन्तु उसके विषय में अभी मैं कुछ नहीं कहूंगा, यह देखते हुए कि भ्रमण करते-करते तुम अभी ही ऊब चुके हो।"

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