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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

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और तब वह करीमा के साथ चल पडा़, वह और उसके नौ शिष्य, बाजार में पहुंच गए। उसने लोगों से बातें की, अपने मित्रों और पडो़सियों से भी और उनके हृदयों और नेत्रों में खुशी चमक रही थी।

और उसने कहा, "तुम अपनी निद्रा में बढ़ते हो और अपना सच्चा जीवन सपनों में बिताते हो, क्योंकि तुम्हारा सारा दिन धन्यवाद देने में बीत जाता हैं, उसके लिए, जोकि तुमने रात्रि की खामोशी में पाया है।”

"प्रायः तुम रात्रि को विश्राम करने का समय बताते हो, किन्तु सत्य यह है कि रात्रि तो पाने और खोजने का समय है।”

"दिन तुम्हें ज्ञान की शक्ति प्रदान करता है औऱ तुम्हारी उंगलियों को लेने की कला में दक्ष बनाता है, किन्तु यह रात्रि ही है, जोकि तुम्हें ज्ञान की शक्ति जीवन के खजाने के मकान तक ले जाती है।”

"सूर्य तो उन सब वस्तुओं को शिक्षा देता है, जोकि प्रकाश के लिए अपनी आवश्यकताएं बढ़ाती रहती हैं, किन्तु यह रात्रि ही है, जो कि उन्हें सितारों तक ऊंचा उठाती है।”

"वास्तव में यह रात्रि की खामोशी है, जोकि जंगल में पेडों पर तथा बगीचों में फूलों पर विवाह का आवरण बुनती है और महान् प्रोतिभोज सजाती है और सुहागरात का महल तैयार करती है और उस पवित्र शान्ति में समय अपनी कोख में कल को धारण करता है।”

"इस प्रकार वह तुम्हारे साथ है, और इस प्रकार प्रयत्न करने पर तुम्हें भोजन प्राप्त होता है और तुम्हारी इच्छापूर्ति होती है। यद्यपि सवेरा होने पर जागरण तुम्हारी स्मृति को मिटा देता है, परन्तु सपनों का परदा तो सदैव फैला रहता है और सुहागरात का महल तुम्हारी सदैव प्रतीक्षा करता रहता है।”

"और वह कुछ देर के लिए खामोश हो गया, और वे लोग भी, उसकी वाणी की प्रतीक्षा में चुप रहे तब उसने फिर कहा, "तुम सब प्रेतात्मा हो, यद्यपि तुम शरीरों से चलते हो, और तेल की भांति हो, जोकि अन्धकार में जलता है; तुम ज्वाला हो, किन्तु दीये के अन्दर बन्द हो।”

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