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अंतिम संदेश

खलील जिब्रान

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :74
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9549

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विचार प्रधान कहानियों के द्वारा मानवता के संदेश

"यदि तुम शरीर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हो, तब मेरा तुम्हारे सम्मुख खडे़ होना और तुमसे कुछ कहना शून्य के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। किन्तु मेरे मित्रो, यह बात नहीं है। वह सब, जोकि तुम्हारे अन्दर अमर है, दिन और रात सदैव स्वतन्त्र है, और न उसे किसी मकान में बन्द किया जा सकता है औऱ न उसे बेड़ियों में जकडा़ जा सकता है, क्योंकि यही ईश्वर की इच्छा है। तुम उसी की श्वास हो, ऐसे ही जैसे कि वायु जोकि न तो पकडी़ ही जा सकती है और न कैद ही की जा सकती है, और मैं भी ईश्वर की श्वास की एक श्वास हूं।"

और वह उनके बीच तेजी से चल पडा़ और उसने फिर बगीचे में प्रवेश किया।

और सारकिस, वह जोकि अर्थ सन्देही था, कुरूपता क्या है, प्रभो? आपने कुरूपता के विषय में कुछ नहीं कहा।"

और अलमुस्तफा ने उसे उत्तर दिया। उसकी आवाज में तीखापन था उसने कहा, "मेरे मित्र, कौन मनुष्य तुम्हें आतिथ्य बिमुख कहेगा? क्या वह, जोकि तुम्हारे घर के पास से गुजरे और तुम्हारे दरवाजे पर दस्तक भी न दे?

"और कौन तुम्हें बहरा तथा अज्ञानी कहेगा, जबकि वह तुमसे अनजान भाषा में बात करे, जिसे तुम तनिक भी नहीं समझते?

"क्या यह वह नहीं है, जिस तक पहुंचने का तुमने कभी प्रयास नहीं किया, जिसके हृदय में प्रवेश करने की तुम्हारी कभी इच्छा नहीं हुई जिसे कि तुम कुरूप कहते हो?”

"यदि कुरूपता कुछ है तो वास्तव में वह हमारी आंखों पर एक आवरण है और हमारे कानों में भरा हुआ मोम।”

"किसी को भी कुरूप न कहो मेरे मित्र, सिवा एक आत्मा के भय को, उसकी अपनी स्मृतियों के सम्मुख।"

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