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उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
इस पर भी मैं चाहता था कि महारानी अम्बिका को सांत्वना मिले। इस कारण मैंने कहा, ‘‘महारानीजी! मेरी सम्मति है कि चित्त को शान्ति प्रदान करने के लिए आप तीर्थ-यात्रा करिये। प्रवास में रहने से तथा भिन्न-भिन्न देशों और स्थानों के दर्शन करने से आप अपने दुःख को भूल सकेंगी।’’
‘‘तीर्थ-यात्रा का कुछ अर्थ नहीं होता। उससे हमारे जीवन का अभाव पूर्ण नहीं होगा।’’
‘‘अभाव का ज्ञान छूट जायेगा। महारानीजी! चित्त दूसरी ओर लग जाने से दुःख की निवृत्ति हो जायेगी।’’
‘‘यह अब इस जन्म में नहीं हो सकता। देखिये संजयजी! मैं तीर्थाटन को जाऊँगी तो राज्य की ओर से दास-दासियाँ, सेवक-सेविकायें, संरक्षक इत्यादि सैकड़ों साथ में होगे जो दिन-रात मुझको इस राज्य और परिवार का स्मरण दिलाते रहेंगे और मेरा दुःख बना रहेगा।’’
मैं देख रहा था कि महारानी अम्बिका को जीवन नीरस प्रतीत होने लगा है और इसका परिणाम या तो आत्म-हत्या होगा अथवा वैराग्य।
राज्य परिवार में कथा-कीर्तन भगवत् भजन, यज्ञ-हवन इत्यादि कुछ नहीं होता था। इस कारण इस परिवार में रहते हुए ज्ञान और वैराग्य अति दुष्कर प्रयोग थे।
उस दिन बात इससे आगे नहीं चली। इस पर भी जो कुछ मैंने सुना था, उससे मेरा अनुमान था कि दोनों काशिराज की पुत्रियों की आहें दिन-रात इस परिवार की जड़ों को खोखला कर रही हैं।
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