|
उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
|
137 पाठक हैं |
हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘क्या अर्थ है इसका?’’
‘‘अर्थ तो स्पष्ट है। सबसे बड़े राजकुमार चक्षु-विहीन हैं। वे राज्य का भार वहन नहीं कर सकते। कदाचित् उनसे विवाह के लिए कोई श्रेष्ठ राजकुमारी भी नहीं मिलेगी। इस पर पुनः वही समस्या उत्पन्न हो जाएगी, जो इन राजकुमारों के उत्पन्न होने से पहले हुई थी।’’
इस पर भीष्मजी गम्भीर विचार में पड़ गये। कुछ विचारकर पूछने लगे, ‘‘पांडु के विषय में क्या विचार है?’’
‘‘पांडू वीर, धीर और ओजस्वी है। वह सब प्रकार से राज्य पाने का अधिकारी है। परन्तु उसमें भी दो त्रुटियाँ है। एक तो वह छोटी महारानी का पुत्र है। बड़ी महारानीजी को इससे असन्तोष होगा। वे पहले ही अपने को भाग्यहीन मानती है। पांडु को राज्य मिलने पर तो वे न जाने क्या कहने लगें।’’
‘‘उसके असन्तोष में क्या कारण हो सकता है?’’
मुझको यह प्रश्न सुनकर आश्चर्य हुआ। या तो भीष्मजी मनोविज्ञान से सर्वथा अनभिज्ञ थे अथवा वे मुझको एक बाहरी व्यक्ति मान पूर्ण मन की बात बताना नहीं चाहते थे। वे नहीं जानते थे कि महारानी अम्बिका मेरे सामने अपने मन की अवस्था पूर्ण रूप से बता चुकी हैं। मैं अपने मुख से यह नहीं कहना चाहता था। इस कारण मैंने कह दिया, ‘‘एक दूसरा कारण भी है। पांडू वनवासी प्रवृत्ति रखता है। उसको एकान्तवास अधिक पसन्द है। राजा को तो नगर का धक्कमपेल रुचिकर होना चाहिए।’’
‘‘यह क्यों?’’
‘‘इसलिए महाराज! कि राज्य की अधिक आवश्यकता नगरों में होती है। वनों में तो शान्तिप्रिय लोग रहते हैं। उनको राजा के शासन की न तो आवश्यकता रहती है, न वे शासन की बातों को मानते हैं।’’
|
|||||










