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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘यदि पांडु को भी राज्य न मिले तो फिर किसको मिले? क्या विदुर को राज्य-भार सौंपा जाये?’’

‘‘नहीं महाराज! मेरे कहने का यह अभिप्राय नहीं है। यदि राज्य विदुर को दिया गया तो वह सब-का-सब भिक्षा में दान कर देगा।’’

राजकुमारों के इस विश्लेषण को सुन भीष्मजी हँसने लगे। तत्पश्चात् बोले, ‘‘आपके कहने का अर्थ यह हुआ कि राज्य करने के योग्य हमारे परिवार में कोई नहीं है।’’

‘‘है तो! परन्तु जो इस कार्य के योग्य है, वह राज्य करता हुआ भी राज्य बनना नहीं चाहता। मेरा अभिप्राय श्रीमान् से है।’’

‘‘क्या अर्थ है इसका?’’

‘‘एक राजा को न केवल शासन चलाना होता है, प्रत्युत राज्य का उत्तराधिकारी भी निर्माण करना होता है। जो राजा यह कार्य नहीं करता, वह राज्य में केवल एक अमात्य-मात्र ही माना जायेगा।’’

‘‘आप ठीक कहते हैं संजयजी! मैं अपने को इतना मात्र ही समझता हूँ। राज्य माता सत्यवती का है। माता के ओजस्वी पुत्र कृष्ण द्वैपायन की सन्तान राजा बनेगी।’’

‘‘क्षमा करें महाराज! मैं आपको सुरराज इन्द्र की भविष्यवाणी बता देता हूँ। उसका दृढ़ मत है कि यदि आप स्वयं राज्य-वंश नहीं चलाते तो यह राज्य और माता सत्यवती का परिवार, सर्वनाश को प्राप्त होगा।’’

‘‘वह इन्द्रिय-लोलुप आपको कहाँ मिल गया था?’’

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