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उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
‘‘जब मैं देवलोक में था, तब बातों-ही-बातों में सुरराज ने यह भविष्यवाणी कर दी थी।’’
‘‘और आप उसको बहुत बुद्धिमान व्यक्ति मानते हैं?’’
‘‘बुद्धिमान न सही. किन्तु ज्ञानवान् तो वे हैं ही।’’
‘‘क्या ज्ञान है उनमें?’’
‘‘देवताओं द्वारा सहस्त्रों वर्षों से एकत्रित ज्ञान-भण्डार उनके अधीन है। यही कारण है कि हिमाच्छादित पर्वतों के बीच अति सुन्दर, सुखद् और उष्मायुक्त देश निर्माण कर रखा है। लक्ष-लक्ष देवता बिना किसी प्रकार का कार्य किये भोजन, वस्त्र और निवास-गृह बनाने के लिए दिनभर में सात प्रहर काम करना पड़ता है।’’
‘‘इस पर भी बन्दी कितने हो सकते हैं? वे पूर्ण देश की उक्त आवश्यकातओं को कैसे पूर्ण कर सकते हैं?’’
‘‘यही तो बात है। देवलोक में कारागारों पर लोहावरण रखा जाता है। कोई नहीं जानता कि वहाँ पर कितने बन्दी हैं और वे क्या खाते हैं अथवा पहनते हैं?’’
‘‘परन्तु संजयजी! मेरा कथन तो यह है कि आज देवता लोग भारत के विषय में कुछ नहीं जानते। अतएव उनकी भविष्यवाणी भी कोरा प्रलाप मात्र है।’’
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