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भज गोविन्दम्

आदि शंकराचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :37
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9557

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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका


पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,
पुनरपि जननी जठरे शयनम्।
इह संसारे बहुदुस्तारे,
कृपयाऽपारे पाहि मुरारे ॥21॥

(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)

बार-बार जन्म लेना, बार-बार मरना, बार-बार माँ के गर्भ में आना – ऐसा है संसार का यह दुस्तर प्रभाव। हे मुरारे ! (मुर नामक राक्षस को मारने वाले) अपनी अनन्त दया से मेरा उद्धार करो ॥21॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)

punarapi jananaM punarapi maraNaM
punarapi jananii jaThare shayanam.h
iha saMsaare bahudustaare
kR^ipayaa.apaare paahi muraare ॥21॥

Born again, die again, stay again in the mother's womb, it is indeed difficult to cross this world. O Murari ! please help me through your mercy. ॥21॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)

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