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भज गोविन्दम्

आदि शंकराचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :37
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9557

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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका


रथ्या चर्पट विरचित कन्थः,
पुण्यापुण्य विवर्जित पन्थः।
योगी योगनियोजित चित्तो,
रमते बालोन्मत्तवदेव ॥22॥

(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)

जो .योगी केवल गुदड़ी धारण करता है (पहनता है), जो गुण-दोष से परे राह का पथिक है, जिसका मन अपने लक्ष्य में पूर्ण रूप से संयुक्त है, वह (ईश्वरीय चेतना में) रमता है – और उसके बाद या तो बच्चे के समान या पागल के समान रहता है ॥22॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)

rathyaa charpaTa virachita kanthaH
puNyaapuNya vivarjita panthaH
yogii yoganiyojita chitto
ramate baalonmattavadev ॥22॥

One who wears cloths ragged due to chariots, move on the path free from virtue and sin,keeps his mind controlled through constant practice, enjoys like a carefree exuberant child. ॥22॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)

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