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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


10. मुझको उँगली पकड़ कर माँ


मुझको उँगली पकड़ कर माँ
पूरे चौक में घुमाती है।
जब गिर पड़ती कभी जो मैं
माँ भागकर उठाती है।

सीने से फिर लगा लेती है
ओर गीत गाने लगती है।

मैं झट से सो जाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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