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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


12. फिर जब कुछ हुई बड़ी तो


फिर जब कुछ हुई बड़ी तो
पढ़ने चली स्कूल मैं
पढ़ने में अव्वल रही सदा
आती थी हर साल प्रथम मैं

मैं हमेशा खुश रहती थी
हर दुख, हर गम सहती थी।

माँ-पिता के साथ सुखी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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