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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


4. उस दिन मैं पूरी रात यह


उस दिन मैं पूरी रात यह
सोच-सोच हैरान रही
क्यों एक नारी दूजी नारी के
गले को गर्भ में घोट रही।

ना मैं सोई, ना माँ सोई
मैं गर्भ में, माँ बाहर रोई

मैं पेट में, माँ की लाचारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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