ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
|
6 पाठकों को प्रिय 268 पाठक हैं |
मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
5. अब हर दिन हर रात मैं
अब हर दिन हर रात मैं
करती मिन्नतें भगवान से
मुझे बचा लें मेरे ईश्वर
इस निर्दयी पापी जहां से।
कभी सोचती निराश हो जाती
पर कुछ भी ना मैं कर पाती,
कैसी दुर्भाग्य की मारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
¤ ¤
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book