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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


5. अब हर दिन हर रात मैं


अब हर दिन हर रात मैं
करती मिन्नतें भगवान से
मुझे बचा लें मेरे ईश्वर
इस निर्दयी पापी जहां से।

कभी सोचती निराश हो जाती
पर कुछ भी ना मैं कर पाती,

कैसी दुर्भाग्य की मारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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