ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
6. शायद सुन ली भगवान ने मेरी
शायद सुन ली भगवान ने मेरी
दिन रात की ये मिन्नतें
उठा ली उसने दादी मेरी
मिट गई मेरी सारी उलझनें
राहें मेरी साफ हो गई
सोच यह मैं खुश हो गई,
मैं पेट में आज सुखी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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