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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


6. शायद सुन ली भगवान ने मेरी


शायद सुन ली भगवान ने मेरी
दिन रात की ये मिन्नतें
उठा ली उसने दादी मेरी
मिट गई मेरी सारी उलझनें

राहें मेरी साफ हो गई
सोच यह मैं खुश हो गई,

मैं पेट में आज सुखी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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