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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


7. अब तो कुछ ही दिन रह गये


अब तो कुछ ही दिन रह गये
मैं भी तो दुनियाँ देखूँगी
कैसा इसका रूप-रंग हैं
खुद को रंग में रंग लूँगी

फिर वो दिन भी आ गया
जब फिर मेरा जन्म हुआ

माँ की मैं आभारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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