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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


8. जन्म जब मेरा हुआ तो


जन्म जब मेरा हुआ तो
माँ की खुशी का पार न था
पिता ने जब गोद में मुझे लिया
उसका चेहरा कुछ उदास था

मैं उस समय अबोध थी
जो पिता को समझ न सकी

दोनों की गोद में मैं सुखी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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