उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘मैं तो यह समझ रही हूँ कि लंका-विजय के समान पाकिस्तान भी विजय होगा। परन्तु यह कैसे हो सकेगा, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।
‘‘वैसे जो व्यवहार देवताओं से रावण और उसके सजातीयों ने किया था, बहुत सीमा तक वही व्यवहार पाकिस्तान ने भारत से करना आरम्भ कर दिया है।
‘‘पहले से अब स्थिति में अन्तर आ गया है। पहले धर्म-और अधर्म-युक्त व्यवहार के आधार पर जातियाँ मानी जाती थीं। मनु की सन्तान सूर्यवंशीय और चन्द्रवंशीय देवताओं का पक्ष लेती थी। यह इस कारण कि उनके साथ धर्म का सम्बन्ध है। इन मानवों की धर्म-व्यवस्था वही है जो देवताओं की है। देवताओं को भी राक्षसों से युद्ध में मानव ही सहायक मिले थे।
‘‘आज धर्म-अधर्म का नाता नहीं रहा। आज देश में पैदा होने का नाता बन गया है। देश-प्रेम तो कदाचित् तब भी था। अपने देश के जलवायु और देखे-भाले स्थानों और परिजनों से परिचय इस प्रेम का मूल था, परन्तु इसके लिये युद्ध नहीं होते थे। युद्ध होते थे जीवन के विधि-विधान पर। इसे ही धर्म कहते थे।
‘‘यही कारण था कि देशों में सीमायें नहीं थी। एक देश के लोग बिना पासपोर्ट और परमिट के देश-विदेश में आते-जाते थे। दैवी और राक्षसी वैमनस्य भी तो इसी आधार पर था। दोनों के जीवन चलाने के विधि-विधान भिन्न-भिन्न थे।
‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि यह बात पुनः प्रचलित होने वाली है। कम्युनिस्ट जीवन-मीसांसा और स्वतन्त्र जीवन-मीमांसा में संघर्ष होने की सम्भावना प्रतीत होती है।’’
इस समय महिमा ऊपर चली आयी और अपनी बहन के पास बैठकर बोली, ‘‘आज मैं स्कूल से थकी हुई आयी थी तो चाय लेकर सो गयी थी। सोये हुए मुझे स्वप्न आया है कि गरिमा के जीजाजी पाकिस्तानी सीमा पार करते हुए पाकिस्तानी सिपाहियों से पकड़कर वापस कराची भेज दिये गए हैं।’’
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