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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘कौन-सी सीमा थी?’’

‘‘मैं सीमावर्त्ती क्षेत्रों को पहचानती तो हूँ नहीं। इस पर भी ऐसा दिखायी दिया था कि वह रेगिस्तानी क्षेत्र था। जब वह पकड़े गये तो लेट गये। लेटते समय यह समझ आया कि वह स्थान रेतीला था।’’

कुलवन्त को गरिमा की बात स्मरण थी। उसने बात बनाकर कह दिया, ‘‘पर वह वहाँ रेगिस्तान में कहाँ जा पहुँचे? वह तो सियालकोट के क्षेत्र में जहाज से कूदे थे।’’

‘‘हाँ। परन्तु मैं विचार करती हूँ कि युद्ध बन्द हुए पाँच मास से ऊपर हो चुके हैं। पाँच मास में तो मनुष्य तीन हजार मील की यात्रा कर सकता है और सियालकोट से सिन्ध तो चार सौ मील से कम ही है।’’

कुलवन्त ने दीर्ध श्वास लेते हुए कहा, ‘‘भगवान् करे कि वह मिल जाये। यदि वह जीवित है तो ताशकन्द समझौते के अनुसार भारत भेज दिया जाना चाहिये।’’

‘‘मेरा मन कहता है कि वह जीवित हैं।’’

‘‘मैं अपने उच्चाधिकारियों को पुनः लिखूँगा।’’

इस समय गरिमा ने बात बदल दी। उसने कहा, ‘‘दीदी! तुम्हारे जीजाजी किसी प्रकार के प्रशिक्षण के लिये इंगलैण्ड भेजे जा रहे हैं।’’

‘‘अच्छा। तो तुम भी साथ जाओगी?’’

‘‘मेरे लिये आज्ञा है कि दीदी के पास ही रहूँ।’’

‘‘क्यों? किसने आज्ञा दी है?’’

अब कुलवन्त और गरिमा हँस पड़े।

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