लोगों की राय

उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

352 पाठक हैं

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘हाँ। यह तो तुमको ठीक ही बताया गया है, परन्तु यह वस्तु-स्थिति का एक बहुत ही छोटा-सा अंग है।’’

‘‘तो भगवन्! आप बताने की कृपा करे कि वस्तुस्थिति क्या है?’’

‘तो सुनो। तुम्हें अपनी ही कथा से बताना आरम्भ करता हूँ। हमारे एक पूर्वज राजा कुश थे। वह प्रजापति के पुत्र कहे जाते हैं। प्रजापति उस व्यक्ति की उपाधि है जो बहुत-सी प्रजाओं को उत्पन्न करें और उन प्रजाओं को सुसंगठित कर लोक-कल्याण का कार्य सम्पन्न करे। लोक-कल्याण से अभिप्राय है कि राज्य निर्माण कर उसमें अधिक-से-अधिक प्रजा का पालन-पोषण करे।

‘‘यह भी प्रजापति का कार्य है, परन्तु यह दूसरी श्रेणी का कार्य है। प्रथम श्रेणी का कार्य है अपनी सन्तान निर्माण करना। एक-एक प्रजापति की हजारों सन्तान होती थीं।

‘‘जिसके अपने औरस और मानस पुत्र सहस्त्रों हों वह प्रजापति कहा जा सकता है। अतः हमारे इस पूर्वज ने कई सौ विवाह किये और उनसे कई सहस्त्र सन्तान उत्पन्न कीं। उस सन्तान के विवाह किये और उन्होंने भी सन्तान उत्पन्न की। परिणाम यह हुआ कि कुश प्रजापति के कौशिक नाम से गोत्र चल पड़ा।

‘‘इतनी सन्तान से महाराज कुश ने एक बहुत बड़ा साम्राज्य स्वापित कर लिया।’’

‘‘तो महाराज! ये सहस्त्रों पुत्र परस्पर लड़ नहीं पड़े?’’

‘‘लड़ते क्यों? वे सब-के-सब भली-भाँति सुशिक्षित थे, साथ ही इस लम्बे-चौड़े परिवार का ज्येष्ठ एक कुश नाम का था, जो बहुत ही योग्य शासक था। उसने परिवार के सब लोगों को उत्तरदायित्व के पद पर नियुक्त हुआ था। सबको अपनी-अपनी योग्यतानुसार अधिकार और सुख-सुविधा प्राप्त थीं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book