उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘देखों सिस्टर!’’ कुलवन्त ने उसको साहस बँधाने के लिये कह दिया, ‘‘परमात्मा के घर में तो कोई भी बच्चा ‘‘इललैजिटिमेंट’ कभी भी नहीं होता। परमात्मा ने बच्चा पैदा करने के लिये जो विधि-विधान बना रखा है, वह तो पालन हुआ ही है। उस विधि-विधान के अतिरिक्त तुमने कोई नया ढंग बच्चा निर्माण का आविष्कार किया है तो बताओ ? यह बच्चा, जो तुम कहती हो कि वन रहा है यह ‘लैजिटिमेट’ ही है।’’
‘‘पर मैं तो समाज की बात कह रही हूँ। बच्चा पैदा होने पर म्यूनिसिपल अधिकारी बच्चे का नाम रजिस्टर करते हैं। उसे रजिस्टर
कराते समय विवाह का सर्टिफिकेट दिखाना पड़ता है।’’
‘‘तो यह बात है। देखो सिस्टर, यह प्रबन्ध तो हो सकता है’’ कैसे हो सकता है? यह तो मेरे लिये किचित् मात्र भी झूठ बोलना नहीं चाहते ।’’
‘‘झूठ बोलने की क्या आवश्यकता है? मैं एक ऐसे ढंग से विवाह का सर्टिफिकेट बनवा सकता हूँ जिसमें दूसरे विवाह की पाबन्दी नहीं है।’’
‘‘मुसलमानी विवाह की बात कह रहे हैं?’’
‘‘नहीं। मैं हिन्दू तरीके से विवाह की बात कह रहा हूँ।’’
‘‘परन्तु हिन्दुस्तान में भी तो ‘बाई गैमी’ (दो पत्नियाँ) वर्जित हैं।’’
‘‘मैं जानता हूँ। परन्तु हिन्दू स्मृति में वर्जित नहीं है और हिन्दू स्मृति तो हिन्दुस्तान से बाहर भी प्रयुक्त होती है।
‘‘देखो अमृत! मैं पैरिस में एक पण्डित को जानता हूँ जो तुम्हें विवाह का सर्टिफिकेट दे देगा। विवाह पाकिस्तान में हुआ कहा जायेगा।
सूसन ने कह दिया, ‘‘परन्तु वहाँ तो विवाह हुआ नहीं।’’
‘‘अमृत की कहानी सुन तो मुझे यही समझ आया था कि आपने इसे वहाँ ही वरा था।’’
‘‘क्यों जी!’’ सूसन ने अमृत की ओर देखकर पूछा, ‘‘आपने क्या झूठ बोल रखा है इनके सामने?’’
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