उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘उसने मुझे तलाक दे दिया है।’’
‘‘किस कोर्ट में?’’
‘‘परमात्मा के कोर्ट में। मेरा मतलब है, एक दिन मेरी बाँह पकड़ कर घर से बाहर निकाल दिया और कह दिया है कि पुनः उसके घर जाऊँगा तो पुलिस में रिपोर्ट लिखा छलना से विवाह करने के अपराध में पकड़वा दूँगी।’’
‘‘वाह! तो अब कहाँ रहते हो?’’
‘‘पैरिस के एक सुबर्ब में एक फ्लैट ले रखा है। सप्ताह में केवल दो दिन वहाँ रहता हूँ, एक दिन वाशिंगटन में रहता हूँ और चार दिन यात्रा में रहता हूँ।’’
कुलवन्त से नहीं रहा गया। उसने कहा, ‘‘तो अब छटा विवाह करने का विचार कर रहे हो?’’
‘‘वह भी कर लिया है। वह हमारे विभाग में एयर होस्टैस है।’’
‘‘तुमने इस परिवर्तन की बात लिखी नहीं?’’
‘‘लिखी थी। परन्तु अब विचार करता हूँ कि वह पत्र सूसन ने चुरा लिया होगा। मैं भी विस्मय कर रहा था कि तुमने उसका उत्तर क्यों नहीं लिखा? उस पत्र में मैंने अपना नया पता लिखा था।’’
इस समय फ्रांसीसी ‘ट्रांस कौन्टिनेण्डल’ की सूचना प्रसारित की गई। अभिप्राय यह कि अमृत के जहाज को क्लीयरेंस मिल गयी है।
अमृत ने जल्दी-जल्दी में अपनी जेब से अपने पते का कार्ड निकाल कुलवन्त को देते हुए कहा, ‘‘इस पते पर लिखना अथवा कभी पैरिस आओ तो मिलना। तब तुम्हें नयीं मिसेज से मिलाऊँगा।’’
‘‘आऊँगा। सप्ताह के किस दिन वहाँ होते हो?’’
‘‘शनिवार और रविवार को।’’
‘‘मिलने का यत्न करूँगा।’’
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