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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास

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कुलवन्त विष्णुशरण द्वारा लिखी कथा को पढ़ते हुए यह समझ रहा था कि यह बाबा युद्ध-नीति और राजनीति के मूल सिद्धान्तों को जानने प्रतीत होते थे। कदाचित् उन्होंने इस विषय पर बहुत मनन किया था। पुस्तक में उसने नीति की यह बात पढ़ी तो वह चकित रह गया।

एक समय में एक पत्नी तो पत्नी होती है और जब एक से अधिक हों तो वे घर के प्राणी मात्र होती है। यदि घर का स्वामी कुशल प्रबन्धक नहीं हुआ तो एक-न-एक वैमनस्य फूट ही पड़ता है। पति अथवा पत्नी तो एक ही होती है, अन्य उसके प्रतिस्पर्धी।

यही बात दशरथ के घर में हुई। दशरथ की तीन पत्नियाँ थीं और तीनों परम्परा स्नेहपूर्वक रहती थीं। उनके स्नेह को चुनौती देने वाली परिस्थिति कोई भी नहीं थी। राजा की अवस्था पचहत्तर वर्ष की हो चुकी थी। वह पति के रूप में सबके लिये समान था। शेष वस्त्र, भूषण, सेवक-सेविकायें सबके लिये प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थीं।

इस सुखमय वातावरण में देवताओं का काम चल नहीं रहा था। कोशल राज्य गंगा के उत्तर में था। गंगा को पार कर दक्षिण की ओर कई छोटे-छोटे राजा थे। यमुना से पार बीहड़ वन-प्रदेश था और उससे पार विन्ध्याचल था। विन्ध्याचल के दक्षिण की ओर राक्षस उपद्रव मचा रहे थे। वहाँ की प्रजा भाग-भाग कर उत्तर के राज्यों मे आ रही थी। वहाँ की भूमि उपजाऊँ थी, परन्तु जनसंख्या कम थी। अतः दक्षिण विन्ध्य प्रदेश से आये विस्थापित लोग राज्य के हित में ही थे। अतः वहाँ के राज्यों के लिये यह सुखद स्थिति ही थी। कोशल राज्य में तो अभी इसका प्रभाव नहीं हो रहा था। अतः राम का राक्षसों से कभी भी आमना-सामना होने की सम्भावना नहीं थी।

इस कारण देवता समझने लगे कि रावण और राक्षसों की पराजय का जो अयोजन ब्रह्मा ने किया है, वह असफल हो जायेगा।

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