उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘कहा तो किसी ने नहीं। मैं अपने मन से विचार कर रहा था कि आपसे कहूँ कि आप इन शस्त्रों को राम को दे दें।
‘‘नहीं मुनिजी! ये साधन तो भगवान् की उपाधि प्राप्त व्यक्ति के ही काम आ सकते हैं।’’
‘‘तो आप उसे भगवान् की उपाधि से विभूषित कर दें। ऐसा करने की सामर्थ्य आप में है।’’
‘‘नहीं मुनिवर! मैं उपाधि वितरक नहीं हूँ। वह हमारे पुरोहित ब्रह्माजी हैं। वह चाहें तो यह बात कर सकते हैं।’’
नारद मुनि की चाल यह थी कि राम को किसी प्रकार अयोध्या से निकलवा कर उन वनों में भेज दिया जाये जहाँ राक्षसों का उत्पात हो रहा था। इसके लिये मुनि ने मंथरा को प्रभावित किया। मंथरा कैकेयी की दासी थी। उसे तैयार किया गया कि वह रानी कैकेयी को भड़काये कि कौशल्या के पुत्र राम को राज्य मिलने पर उसकी और उसके सब दास-दासियों की स्थिति ऐसी हो जायेगी जैसी नगर में किसी साधारण स्त्री-पुरुष की है।
यह बात मंथरा की एक दासी-सखी द्वारा उसके कान में डलवा दी गयी। उस समय राम के युवराज बनाये जाने का समाचार राज्य के मुख्य मन्त्रियों के विचारधीन ही था। यह सामान्य प्रजा को अभी विदित नहीं हुआ था।
जब मंथरा की सखी ने यह बात उसको कही तो मंथरा को विश्वास नहीं आया। इस पर भी वह कल्पना करने लगी थी कि यदि यह समाचार ठीक हुआ तो क्या सत्य ही उसकी तथा उसकी रानी कैकेयी की यह दशा हो जायेगी?
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